न्यूजडेस्क। 7 मई को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने घोषणा की थी कि राजस्थान की सीमाएं सील की जा रही है। अब दूसरे राज्यों के श्रमिकों और अन्य लोगों को प्रवेश नहीं दिया जाएगा। ऐसा राजस्थान के लोगों को सुरक्षित करने के लिए किया जा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि मुख्यमंत्री होने के नाते अशोक गहलोत को पहले अपने प्रदेश के लोगों के हितों की चिंता करनी चाहिए, लेकिन सवाल यह भी था कि क्या राजस्थान जैसे बड़े प्रदेश की सीमाएं सील की जा सकती है? अब सीएम गहलोत का बयान आया है कि किसी को रोकने के लिए सीमा सील नहीं की गई, बल्कि केन्द्र सरकार की गाइड लाइन की पालना के लिए दिशा निर्देश दिए गए हैं। जाहिर है कि राजस्थान सरकार एक ही दिन में अपने फैसले से पलट गई है। केन्द्र सरकार ने कभी नहीं कहा कि कोई प्रदेश अपनी सीमा सील कर लें। केन्द्र सरकार तो श्रमिकों के स्थानांतरण के पक्ष में भी नहीं थी। गहलोत जैसे मुख्यमंत्रियों ने ही दबाव डाल कर श्रमिक स्पेशल ट्रेने चलवाई। ऐसा प्रतीत होता है कि कोरोना वायरस से मुकाबला करने में राज्य सरकार हड़बड़ी में है। आम लोगों से तो यह अपेक्षा की जाती है कि वे दहशत में न आएं और ऐसी कोई बात नहीं करें जिससे माहौल खराब हो, लेकिन सीमा सील करने जैसी घोषणाएं कर सरकार स्वयं दहशत का माहौल उत्पन्न कर रही है। पिछले कुछ दिनों से मीडिया की कमान भी सीएम गहलोत ने स्वयं ही संभाल रखी है। अब सरकार की सभी खबरें मुख्यमंत्री के हवाले से ही प्रसारित होती है। ऐसे में सरकार के कथनो की गंभीरता और बढ़ जाती है। सीमा सील करने के मुद्दे पर सरकार एक ही दिन में पलट जाए, इससे हड़बड़ाहट का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसा नहीं कि सीएम गहलोत कोरोना को लेकर गंभीर नहीं है। गहलोत के प्रयासों और गंभीरता की प्रशंसा खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की है। असल में अब राज्य सरकार को दूर दृष्टि दिखाने की जरुरत है। कोई भी निर्णय लेने से पहले उसके परिणाम का आंकलन भी करना चाहिए। राजस्थान की विशाल भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेने चाहिए। निर्णय भी ऐसे जिनसे लोगों को कम से कम परेशानी हो। सरकार ने लोगों को राहत देने के लिए ईपास की व्यवस्था की है। पहली बात तो वेबसाइट पर आवेदन लोड ही नहीं होता है। यदि हो भी जाए तो अधिकांश आवेदन निरस्त किए जा रहे हैं। गाइड लाइन के मुताबिक दस्तावेज लगाने के बाद भी आवेदन निरस्त किए जा रहे हैं। इस संबंध में कोई व्यक्ति यदि संबंधित अधिकारी से मिलना चाहे तो उसकी मुलाकात नहीं होती। लॉकडाउन और कफ्र्यू में पुलिस के डंडे खाते हुए यदि कोई व्यक्ति कलेक्ट्रेट पर एसडीओ ऑफिस तक पहुंच भी जाए तो से दफ्तर में प्रवेश नहीं दिया जाता है। इधर-उधर की एप्रोच लगाकर कोई भाग्यशाली व्यक्ति दफ्तर परिसर में घुस भी जाए तो अधिकारी से मुलाकात नहीं हो पाती है। क्योंकि अधिकारी या तो मीटिंग में या फिर वीडियो कान्फ्रेंसिंग में व्यस्त रहते हैं। मुख्यमंत्री माने या नहीं लेकिन जमीनी हकीकत बहुत खराब है। कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद भी प्रशासनिक अमला संवेदनशील नहीं है।
(साभार: एसपी.मित्तल)