*..मैं आज के दिन 25 अप्रैल को इसलिए याद रखता हूँ ताकि अपने मकसद से भटक न जाऊं : मोदी*



न्यूजडेस्क।
*33 वर्ष पूर्व 1987 में आज 25 अप्रैल ही की रात 12.40 पर मुझे मारने के लिए पेशेवर डकैतों ने खतरनाक हमला किया था, मैं पूरा खून में लथपथ, फिर भी उन डकैतों का पीछा किया और उनकी गाड़ी के नंबर नोट कर लिए। सभी गिरफ्तार हुए। न्यायालय सजा सुनाता उससे पहले ही बाहर से आए तीनों डकैत एक की गैंगवार में, दूसरे की सड़कर पागल होकर कुएं में गिरने से और तीसरे की शादी की पूर्व रात्रि को ही किसी के द्वारा गर्दन काटकर ले जाने से मौत हो गई।*
*ये डकैत भीलवाड़ा में एक बैंक डकैती के मामले में साढ़े चार साल जेल की सजा काट चुके थे, इन्होंने एक तहसीलदार के हाथ-पैर काट दिए थे, पुलिस के साथ इनका 32 घंटे एनकाउंटर चला था। इनको उस समय मुझे मारने के लिए 12 लाख रुपये दिए गए थे। जो लोग मुझे मरवाना चाहते थे पहले उन्होंने मेरी कलम को रोकने के लिए 50 लाख से एक करोड़ तक देने की पेशकश की थी और काफी दबाव बनाया था, किन्तु मैंने अपनी कलम को रोकने और बिकने से इनकार कर दिया था, इसी कारण मुझे मारने के लिए यह हमला करवाया गया। इन सब बातों के अधिकृत प्रमाण और दस्तावेज आज भी सेशनकोर्ट से लेकर हाई कोर्ट में मौजूद हैं।*
*कोर्ट ने 18 साल बाद इस मामले में सजा सुनाई, बचे हुए उन लोगों को जो टेक्सी चला रहा था या जो रास्ता बताने आए थे।*
*जिस व्यक्ति ने यह सब करवाया, उसे पहले हार्टअटैक हुआ, बाईपास हुआ, फिर कूल्हे टूटे तो बोल लगवाई, फिर लिवर ट्रांसप्लांट हुआ, फिर घुटनों के ऑपरेशन हुए और अंत में किडनियां फैल हो गई तो स्थाई रूप से डायलिसिस पर ही रहना पड़ा और अंत में दुःखद मृत्यु हो गई।*
*इस आघात से उबरने-संभलने और फिर से खड़े होने में मुझे काफी वक्त लग गया, क्योंकि अकेला था, जो लोग साथ थे, भय के मारे वे भी मुँह छिपाकर बैठ गए थे।*
*मैं क्यों बचा, बचकर जीवन में क्या कर पाया..? मेरा सपना, मेरा अभिग्रह सबकुछ तो अभी पूरा होना बाकी है और बीच में ही यह तालाबंदी....आज पहली बार थोड़ी गहरी निराशा सी है....क्योंकि जिस गति से मैं काम कर रहा था, लगता था, जल्दी ही मंजिल मिल जाएगी, परंतु.....ऊपर वाले को क्या मंजूर है, पता नहीं...!*
*मैं इस दिन को इसलिए याद रखता हूँ ताकि अपने मकसद से भटक न जाऊं।*
*खैर...लक्ष्य तक पहुंचे बिना पथ में पथिक विश्राम कैसा...*
*सुर गंगा भी अरे भगीरथ यत्नों से भूतल पर आती, किन्तु शीश पर धारण करने, शक्ति का आधार चाहिए...*
*यही शक्ति जुटाने का अब प्रयास है...!*


डॉ मदन मोदी, उदयपुर