कोरोना इफेक्ट ; कंगाली के दरवाजे पर बीकानेर के हस्तशिल्पी सुनार..

 


न्यूज डेस्क।
भारत ही नहीं एशिया में जड़ाऊ कुंदन कार्य के लिए मशहूर पांच शताब्दी से अधिक प्राचीन बीकानेर के स्वर्ण हस्तशिल्पी सुनार कोरोना से कंगाली के कगार पर आ गए हैं। सोने-चांदी के भावों में उतार चढ़ाव के बाद लाॅक डाॅउन फिर कर्फ़्यू ने कामगारों की कमर ही तोड़ दी है। जड़िए, घड़िए और मीनाकार आदि विभिन्न कार्यों से जुड़े श्रमिक बेरोजगारी की मार से त्रस्त् होकर कर्ज में डूब रहे हैं ! वहीं कई लोग शासन, प्रशासन व सामाजिक एवं स्वयं सेवी संस्थाओं से प्राप्त सुबह-शाम का खाना खाकर अपना पेट भर रहे है। उनके बच्चों के लिए नकद करैंसी के अभाव में दूध व दवाईयां तक नसीब नहीं हो रही। एक अनुमान के अनुसार बीकानेर में एक वर्ष में पांच अरब से अधिक राशि के जड़ाऊ सोने के गहने भारत के प्रमुख शहरों के माध्यम से विदेशों में निर्यात होते है। एक वर्ष से सोने चांदी के भावों में उतार चढ़ाव से काम के लिए तरसते सुनार कामगारों को कोरोना का कहर काल सा दिख रहा है।
एक अनुमान के अनुसार बीकानेर में प्रतिदिन करीब 20 किलो सोना तथा एक क्विंटल चांदी की बिक्री होती रही है। दो दर्जन से अधिक सुनारों के अलावा मराठा और अन्य जाति और बिरादरी के लोग सोना-चांदी विक्रय करते है, वहीं आधा किलो से एक किलो सोने के तथा 50 किलो चांदी के गहनों की बिक्री होती है। पिछले एक साल से यह बिक्री नगण्य सी बताई जा रही है। सगाई, शादी व अन्य मांगलिक कार्य भी स्थगित होने से सोने-चांदी के गहनों का धंधा भी बिलकुल मंदा हो गया है। मरकज में शामिल होकर पश्चिम बंगाले से बीकानेर में रह रहे एक हजार से अधिक बंगाली कारीगरों व महाराष्ट्र से आए मराठाओं से भी करोना का वायरस के खतरे से डर के कारण सिटी कोतवाली के पास रुक्मणी फ्लेट्स, सुनारों की गुवाड़ सहित अन्य स्थानों पर रहने वाले सुनारों ने अपने आप को घरों में बंद कर लिया है।
बीकानेर में प्रतिदिन बिकने वाले सोने का आधा हिस्सा करीब 8-10 किलो सोना पश्चिम बंगाल के कारीगरों के पास आभूषणों के निर्माण के लिए सुनारों व शो रूम मालिकों द्वारा दिया जाता है। बंगाली कारीगर तथा सोने की लाखों रुपए की टंच मशीन लगाकर उसकी शुद्धता की जांच करने वाले मराठे भी मालामाल हो रहे है वहीं परम्परागत व पुश्तैनी रूप् से पीढ़ी-दर पीढ़ी अपने हूनर से कार्य करने वाले सुनार कारीगर मुफलिसी की मार झेल रहे है। काम की कमी से हुई बेरोजगारी से परेशान कई लोगों ने तो मजदूरी, छोटे कार्य और निजी संस्थाओं में नौकरी करने लगे है। लाॅक डाॅउन व कफ्र्यू में निजी कार्य भी ठप्प है। बगेची, पंचायत मैढ़ सुनारान श्री बीकानेर मोक्षधाम, श्री खाटू श्याम सेवा संघ, श्री कृृष्ण सेवा संस्थान, श्री मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार जाग्रति विकास समिति संस्थान ओर भाजपा, कांग्रेस व शिव सेना से जुड़े पदाधिकारी व कार्यकर्ता पीड़ित व आर्थिक मंदी की मार झेल रहे सुनार समाज के कारीगरों, मजदूरों का सहयोग कर उन्हें राशन सामग्री, खाना पहुंचाने का अनुकरणीय कार्य कर समाज का गौरव बढ़ा रहे है ।़
स्वर्ण नियंत्रण कानून के समय की सुविधा की दरकार
पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने वित मंत्री पद पर रहते 1962 में स्वर्ण भंडारण और 24 अगस्त 1968 को स्वर्ण नियंत्रण कानून बनाया था। इस कानून के तहत आम नागरिकों को सिली और सिक्कों के रूप में सोना नहीं रखने ओर सोने के आभूषण बनाकर सरकार को जानकारी देने के लिए पाबंद किया था। सुनारों पर 100 ग्राम से ज्यादा रखने और लाइसेंस प्राप्त लोगों को 2 किलो से अधिक सोना रखने पर पाबंदी लगाई गई। ऐसे और भी कई तरह के नियम लगाकर फाॅरेन एक्सचेंज के लिए सोना भंडारण करने का लक्ष्य रखा गया। इस कानून से स्वर्णकारी कार्य व व्यापार को चोतरफा धक्का  लगा। अनेक सुनार बेरोजगार हो गए, रोजी रोटी के लिए तरसने लगे थे। कानून का उल्टा परिणाम आने से तत्कालीन सरकार ने कानून वापस लिया।  स्वर्ण नियंत्रण कानून के दौरान सुनार कामगारों को सबसे बुरे दिन देखने को मिले, उससे भी अधिक वर्तमान में विश्व व्यापी करोना के कहर से देखने को मिल रहा है।
स्वर्ण नियंत्रण कानून के समय सुनारों ने एकजुटता का परिचय देते हुए अपनी समस्या को सरकार तक पहुंचाया था। सरकार ने समस्या पर गौर करते हुए सरकारी नौकरियों में सुनारों के लिए आरक्षण, बच्चों के शिक्षा शुल्क माफी व बैंकों से ऋण आदि सुलभ करवाकर आहत सुनारों को राहत प्रदान की। वर्तमान में भी राजस्थान ही नहीं देश के कामगारों, हस्तशिल्पियों  को विशेष सुविधा की दरकार है। लेकिन सुविधा मिलना कठिन है, न तो सुनारों का प्रभावी संगठन है ना ही कोई सांसद, विधायक व जन प्रतिनिधि है तो इस मांग को सरकार तक पहुंचा सके। भारत मेें स्वर्ण आभूषणों के शो रूमों, निर्यात आदि पर वैश्य समाज का पूर्ण कब्जा है। स्वर्ण आभूषणों के बड़े-बड़े संगठनों के पदाधिकारी भी सुनारों से अधिक दूसरी जाति वर्ग के है वे श्रमिक स्वर्णकार कामगारों के दर्द को नहीं समझते। वे स्वर्णकार कामगारों को मजदूर बनाकर रखना चाहते है तथा उनकी आर्थिक उन्नति की बजाए अपनी उन्नति अधिक करते है। निश्चित ही ऐसे हालात में स्वर्णकार समाज के जागरूक लोगों को सामूहिक कदम उठाने, स्वर्णकार कामगारों की आर्थिक स्थिति को सुधार के लिए व्यक्तिगत, सामाजिक व सरकार स्तर पर प्रयास करने की जरूरत है।